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नई दिल्ली: न्यूरोसर्जरी से तो एक मरीज की जान बच गई लेकिन टेस्ट के लिए गए एक स्कैनिंग सेंटर में एनेस्थीसिया की गलत डोज की वजह से जान चली जाती है। एक मुश्किल न्यूरोसर्जरी के बाद चेन्नई के किलपौक में एक निजी स्कैनिंग सेंटर में एनेस्थीसिया की अतिरिक्त खुराक दिए जाने के कारण कार्डियक अरेस्ट में एक व्यक्ति की जान चली जाती है। मृतक के परिवार वालों ने स्कैनिंग सेंटर के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। 15 साल बाद परिवार ने स्कैनिंग सेंटर के खिलाफ तमिलनाडु के तिरुवल्लूर में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम में कानूनी लड़ाई जीती। अब परिवार को मुआवजे के रूप में 15 लाख रुपये मिले हैं। फोरम ने पिछले सप्ताह फैसला सुनाया कि स्कैनिंग सेंटर को मानसिक पीड़ा के लिए परिवार को राशि का भुगतान करना चाहिए और कानूनी खर्च के लिए उन्हें 10,000 रुपये भी देने चाहिए।
क्या था पूरा मामला
45 साल के डेविड सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस से पीड़ित थे, जो गर्दन में स्पाइनल डिस्क को प्रभावित करने वाली स्थिति है। उन्हें सिरिंक्स भी था, जो रीढ़ की हड्डी में तरल पदार्थ से भरा सिस्ट है। इसकी वजह से डेविड के दाहिने कंधे की मूवमेंट काफी कम हो गई। अक्टूबर 2008 में उन्होंने एक निजी अस्पताल में सर्जरी करवाई और चार महीने बाद वे सिरिंक्स की जांच के लिए एमआरआई स्कैन सेंटर गए। डेविड की पत्नी रेजिना मैरी ने दावा किया कि उन्हें एनेस्थीसिया की भारी खुराक दी गई थी, जिससे कार्डियक अरेस्ट और ब्रेन डेथ हो गई। उन्हें पास के एक निजी अस्पताल में भेज दिया गया लेकिन 15 दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
स्कैनिंग सेंटर के खिलाफ मामला दर्ज कराया
परिवार ने फोरम में स्कैनिंग सेंटर के खिलाफ मामला दर्ज कराया। स्कैन सेंटर ने डेविड की मौत का कारण सर्जरी और ऑपरेशन से उत्पन्न परेशानियों को बताया। सेंटर ने न्यूरोसर्जरी मामलों का हवाला देते हुए संकेत दिया कि इस तरह की आनुवंशिक न्यूरो दिक्कत अक्सर सर्जरी के बाद भी ठीक नहीं होती हैं, और हृदय गति रुकना संयोगवश हुआ था। स्कैन सेंटर ने तर्क दिया कि एमआरआई के लिए आमतौर पर एनेस्थीसिया नहीं दिया जाता है, लेकिन डेविड के डॉक्टर ने इसकी सिफारिश की क्योंकि अत्यधिक दर्द, चिंता और मोटापे से मरीज पीड़ित था, जिससे बेहोशी के बिना स्कैन करना मुश्किल हो गया था। सेंटर ने कहा कि केवल 1 मिलीग्राम की खुराक दी गई थी, जो मृत्यु का कारण बनने के लिए आवश्यक मात्रा का दसवां हिस्सा थी।
स्कैनिंग सेंटर की ओर से क्या कहा गया
स्कैनिंग सेंटर ने कहा कि अगर एनेस्थीसिया गलत तरीके से दिया गया होता, तो डेविड एक मिनट से अधिक जीवित नहीं रह पाता। फिर भी वह जीवित रहा और उसे 15 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। हालांकि सेंटर की ओर से इस्तेमाल किए गए एनेस्थेटिक के पेपर उपलब्ध नहीं कराए गए और यह बात नोट की गई। स्कैनिंग सेंटर अपने दावे को पुष्ट करने के लिए मेडिकल पेपर उपलब्ध कराने में विफल रहा कि हृदय गति रुकना एनेस्थीसिया के बजाय सर्जरी के कारण हुआ था।
क्या था पूरा मामला
45 साल के डेविड सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस से पीड़ित थे, जो गर्दन में स्पाइनल डिस्क को प्रभावित करने वाली स्थिति है। उन्हें सिरिंक्स भी था, जो रीढ़ की हड्डी में तरल पदार्थ से भरा सिस्ट है। इसकी वजह से डेविड के दाहिने कंधे की मूवमेंट काफी कम हो गई। अक्टूबर 2008 में उन्होंने एक निजी अस्पताल में सर्जरी करवाई और चार महीने बाद वे सिरिंक्स की जांच के लिए एमआरआई स्कैन सेंटर गए। डेविड की पत्नी रेजिना मैरी ने दावा किया कि उन्हें एनेस्थीसिया की भारी खुराक दी गई थी, जिससे कार्डियक अरेस्ट और ब्रेन डेथ हो गई। उन्हें पास के एक निजी अस्पताल में भेज दिया गया लेकिन 15 दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
स्कैनिंग सेंटर के खिलाफ मामला दर्ज कराया
परिवार ने फोरम में स्कैनिंग सेंटर के खिलाफ मामला दर्ज कराया। स्कैन सेंटर ने डेविड की मौत का कारण सर्जरी और ऑपरेशन से उत्पन्न परेशानियों को बताया। सेंटर ने न्यूरोसर्जरी मामलों का हवाला देते हुए संकेत दिया कि इस तरह की आनुवंशिक न्यूरो दिक्कत अक्सर सर्जरी के बाद भी ठीक नहीं होती हैं, और हृदय गति रुकना संयोगवश हुआ था। स्कैन सेंटर ने तर्क दिया कि एमआरआई के लिए आमतौर पर एनेस्थीसिया नहीं दिया जाता है, लेकिन डेविड के डॉक्टर ने इसकी सिफारिश की क्योंकि अत्यधिक दर्द, चिंता और मोटापे से मरीज पीड़ित था, जिससे बेहोशी के बिना स्कैन करना मुश्किल हो गया था। सेंटर ने कहा कि केवल 1 मिलीग्राम की खुराक दी गई थी, जो मृत्यु का कारण बनने के लिए आवश्यक मात्रा का दसवां हिस्सा थी।
स्कैनिंग सेंटर की ओर से क्या कहा गया
स्कैनिंग सेंटर ने कहा कि अगर एनेस्थीसिया गलत तरीके से दिया गया होता, तो डेविड एक मिनट से अधिक जीवित नहीं रह पाता। फिर भी वह जीवित रहा और उसे 15 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। हालांकि सेंटर की ओर से इस्तेमाल किए गए एनेस्थेटिक के पेपर उपलब्ध नहीं कराए गए और यह बात नोट की गई। स्कैनिंग सेंटर अपने दावे को पुष्ट करने के लिए मेडिकल पेपर उपलब्ध कराने में विफल रहा कि हृदय गति रुकना एनेस्थीसिया के बजाय सर्जरी के कारण हुआ था।
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